शिवत्व का वर्तुल भगवान शिव की दया का परिणाम है। हमारी बुद्धि क्षमता परमात्मा द्वारा दी गई है। जगत का सामान्य सा नियम है की जब तक जीव का कर्ता मन खड़ा रहता है वो झुकने की स्थिति में होता ही नहीं है। जब काल का प्रवाह तन और मन दोनों को छिन्न-भिन्न करना शुरू करता है तब मानव का मन जगत के तमाम सहारों को छोड़ आध्यात्मिक सहारा ढूंढना प्रारंभ करता है।

शिव सार्वजनिक देवता माने जाते हैं क्योंकि वे सदैव सर्व जनसुलभ हैं। जनसाधारण के लिए उनकी उपासना और पूजा भी सुगम है। शिव के अनेक रूपों में कहीं वह करुणावतार हैं, कहीं महाकाल, कहीं मृत्युंजय तो कहीं श्मशानी निहंगी।

जगत के लोगों को गृहस्थ आश्रम का आदर्श प्रस्तुत करता उनका शिव पार्वती स्वरूप है। अनेक रूपों में गुरु शिव का ज्ञान दाता स्वरूप, जगत की तमाम शक्तियों को एक संतुलित जीवन जीने की योग्यता प्रदान करता है। पूर्णता के परम प्रकाश में महादेव में हमारी पूरी दुनिया समाई हुई है। शिव के ज्ञान की परिधि अपरिमेय है, वहां सिर्फ मानव का मानव से प्रेम, प्रकृति से स्नेह है। विश्व बंधुत्व का समष्टिगत उदाहरण हैं परमात्मा शिव जहां बाघ बैल, मोर, सांप, चूहा सभी समवेत दिखाई देते हैं, सानंद हैं।

शिव की शिष्यता का भावांकन हमें शिव बनाता है। तकनीक के इस दौर में शिव स्वयं में कभी विज्ञान नजर आते हैं तो कभी विज्ञान में ही हमें शिव नजर आते हैं। तर्कयुक्त संसार के सबसे बड़े प्रवक्ता स्वयं शिव हैं। जिस शिव के एक अंश मात्र हैं हम, क्या कभी उनकी पूर्णता को जान सकेंगे।

इतना ही कहा जा सकता है

तवतत्वं न जानामि कीदृशोऽसि महेश्वरः।

यादृशोऽसि महादेवः तादृशाय नमोनमः।।

इस कालखंड के प्रथम शिव शिष्य श्री हरीन्द्रानंद जी ने अनुभूत किया कि गुरु शिव से आया ज्ञान आज के मानव के लिए एकमात्र विकल्प है। शिव की शिष्यता ग्रहण करने का जीव मात्र को सहज अधिकार है। उनका मन संकल्पित हुआ कि धरती के एक-एक व्यक्ति को शिष्य के रूप में जगद्गुरु शिव से जोड़ना उनका मनसा वाचा कर्मणा और एकमात्र इहलौकिक उद्देश होगा। सन 1980 के दशक से यह कार्य अनवरत चल रहा है।

सामान्य से सामान्य व्यक्ति उस महागुरु महादेव का शिष्य बन रहा है जहां कोई बंधन नहीं,कोई वर्जना नहीं। सदियों से भटकते लोगों को एक ठौर मिला।श्री हरीन्द्रानंद जी और दीदी नीलम आनंद जी के इस पावन संकल्प में यह मील का पत्थर साबित होगा।

आज का समाज अंधविश्वास और कुरीतियों से जकड़ा है। धर्म और अध्यात्म के नाम पर आज भी अनेक स्थानों पर झाड़-फूंक और जादू टोने का सहारा कमजोर मन लेता रहता है। शिव की शिष्यता इन तमाम संकीर्णताओं से मानव मन को मुक्त करती है। सामाजिक कुरीतियों से परे एक अलग आकाश देती है,एक नया विहान देती है।

लेखिका महागुरु महादेव पत्रिका की संपादक और अनमिल आखर की लेखिका हैं।

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