कृषि मंत्री ने अनिर्णीत प्रस्ताव को किया निरस्त
रांची:- झारखंड सरकार के कृषि पशुपालन एवं सहकारिता मंत्री बादल ने नवीन एवं एकीकृत झारखंड सहकारी समितियां अधिनियम 2008 के प्रस्ताव को निरस्त कर दिया है। 2008 के अनिर्णीत प्रस्ताव को निरस्त कर दिया है।
बादल ने बताया की वैद्यनाथन समिति की अनुशंसाओ के आलोक में झारखंड सहकारी समितियां अधिनियम 2008 के प्रस्ताव बने लेकिन यह अधिनियम में किन्हीं कारणों से परिणत नहीं हो पाया, जिसकी वजह से आम सहकारी जनों ,सहित लोगों में भ्रम की स्थिति बनी हुई थी, भ्रम की स्थिति इस वजह से बन गई थी क्योंकि वैद्यनाथन कमेटी के प्रस्ताव प्रारूप पर आम सहकारी जनों, आम नागरिकों , एवं प्रबुद्ध जनों के सुझाव, मंतव्य ,परामर्श प्राप्त करने के लिए वेबसाइट पर इसे प्रकाशित कर दिया गया था, लेकिन तत्कालीन कारणों एवं नाबार्ड के परामर्श के आलोक में प्रस्ताव प्रारूप अंतिम रूप में परिणत नहीं हो पाया था ।वेबसाइट पर प्रकाशित प्रारूप एवं बाजार में उपलब्ध सहकारिता मैनुअल की पुस्तकों में झारखंड सहकारी समिति अधिनियम 2008 के नाम से इसे प्रकाशित रहने के कारण 12 वर्षों से आम सहकारी जनों सहित प्रबुद्ध जनों में भी भ्रम एवं असमंजस की स्थिति व्याप्त थी ।कृषि मंत्री श्री बादल ने तत्काल व्यापक जनहित एवं कार्य हित में इस मामले को संज्ञान में आते ही विभागीय स्तर पर जांच पड़ताल कराते हुए झारखंड सहकारी समिति अधिनियम 2008 को निरस्त करने पर अपनी सहमति दे दी है।
आपको बता दें कि नवसृजित झारखंड राज्य में अंगीकृत एवं प्रवर्तित सहकारी समितियां अधिनियम 1935 एवं स्वावलंबी सहकारी समितियां अधिनियम 1996 को एकीकृत करते हुए एवं बिहार राज्य की तर्ज पर सहकारी अधिकरण के गठन को मूर्त रूप देने के उद्देश्य से नवगठित झारखंड राज्य में भी एक नवीन एवं एकीकृत झारखंड सहकारी समितियां अधिनियम 2008 के प्रस्ताव बनाए गए थे, लेकिन तात्कालिक आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए नाबार्ड के परामर्श पर वर्तमान 1935 के अधिनियम के ही कतिपय धाराओं में संशोधन कर दिए गए जो संशोधन अधिनियम 2011 के रूप में झारखंड राज्य में प्रवर्तित है।
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