हमीरपुर:- एक तरफ उत्तर प्रदेश सरकार बुंदेलखंड में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिये हमीरपुर को जैविक जिला बनाने की जी-तोड़ कोशिशें कर रही है, वहीं इस जिले में किसानों का रासायनिक खाद से मोह भंग होने के बजाय, साल दर साल बढ़ता ही जा रहा है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक हमीरपुर जिले में रासायनिक उर्वरक की मांग सालाना 10 प्रतिशत की दर से बढ़ रही है।
किसानों का पूरी तरह से रासायनिक खादों पर निर्भर होना सरकार की चिंता को बढ़ा रहा है। सहकारिता विभाग को इस जिले में हर साल 10 फीसदी यूरिया व डीएपी उर्वरक बढ़ाकर किसानों को वितरित करना पड़ रहा है। इससे जिले में खेती की सेहत पर लगातार विपरीत प्रभाव पड़ रहा है।
सहकारिता विभाग के सहायक निबन्धक (कोआॅपरेटिव) रामसागर चौरसिया ने शनिवार को बताया कि शासन किसानों को जैविक व प्राकृतिक खेती के लिये लगाकार प्रेरित कर रहा है। इसके लिये प्रशिक्षण व किसान गोष्ठियां कर ढेंचा खाद का प्रशिक्षण दिया जा रहा है, मगर किसानों पर इसका प्रभाव दिख नहीं रहा है।
चौरसिया ने बताया कि रबी की फसल की बोआई शुरु होने को है। खाद की मांग को देखते हुये सहकारिता विभाग ने शासन से करीब 14 हजार मीट्रिक टन यूरिया एवं 26 हजार मीट्रिक टन डीएपी की मांग की है। यह पिछले साल की अपेक्षा 10 फीसदी ज्यादा है। उन्होंने बताया कि जिले में रासायनिक खाद की मांग हर साल लगभग 10 फीसदी की दर से बढ़ रही है। जिले का किसान पूरी तरह से यूरिया व डीएपी खाद पर आश्रित हो चुका है।
उन्होंने बताया कि राज्य सरकार नैनों उर्वरक का प्रयोग बढ़ाने के लिये लगातार माथा पच्ची कर रही है, मगर जिले में नाम मात्र की नैनो यूरिया बिक रही है। चौरसिया ने कहा कि किसानों की मांग को देखते हुुये सितंबर माह में 3500 मीट्रिक टन यूरिया एवं 4500 एमटी डीएपी की मांग की गयी है। इसी प्रकार अक्टूबर माह में 3000 मीट्रिक टन यूरिया व 7270 मीट्रिक टन डीएपी और नवंबर के लिये 5850 मीट्रिक टन यूरिया तथा 14 हजार मीट्रिक टन डीएपी की मांग एडवांस में भेज दी गयी है।
उन्होने कहा कि कि जिले में दो दिन बाद 28 सौ मीट्रिक टन डीएपी की रैक आने वाली है। इस साल बरसात अधिक होने के कारण अगले सप्ताह रबी की फसल की बोआई शुरु हो जायेगी। जैसे ही बोआई शुरु होगी, किसानों को डीएपी की आवश्यकता होती है। यदि किसानों को समय से उर्वरक नहीं मिलती है, तो वे धरना प्रदर्शन रोड जाम कर देते है। जिससे सहकारी समितियों में पर्याप्त खाद रखना पड़ती है। पिछले साल की अपेक्षा इस साल 10 फीसदी उर्वरक बढ़ा कर मंगायी गयी है। ताकि किसानों के सामने खाद की समस्या न आने पाये।
मृदा परीक्षण प्रयोगशाला अधीक्षक आरएस वर्मा का कहना है कि रायायनिक उर्वरकों के बढ़ते प्रयोग से जिले की उपजाऊ जमीन में उपजाऊ तत्व कम होते जा रहे है। इससे खेती की सेहत पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है। भूमि के बंजर होने के का खतरा बढ़ गया है। उनका कहना है कि किसान गोबर की खाद अब एकदम भूल गया है।
कृषि वैज्ञानिक डा एसपी सोनकर का कहना है कि ज्यादा डीएपी डालने से उपजाऊ भूमि के बंजर होने का खतरा बढ़ जाता है। इससे किसानों को सावधान रहना होगा। मंडल के कृषि उप निदेशक प्रसाद हरीशंकर भार्गव का कहना है कि रासायनिक उर्वरक खेती की सेहत के लिये नुकसानदायक है। इसके बावजूद किसानों का विश्वास रासायनिक उर्वरक पर अभी भी बरकरार है। इस कारण कृषि में नैनो खाद को बढ़ावा देने की सरकार की कोशिश सफल नहीं हो पा रही है। भार्गव ने कहा कि किसान नैनो खाद पर विश्वास नहीं कर पा रहा है। जिससे खाद की दुकानों में नैनो प्रोडक्ट की बिक्री नाममात्र की हो रही है, जबकि नैनो खाद पूरी तरह से स्वदेशी है।

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