कोलंबो:- श्रीलंका में खाद्य असुरक्षा से पीड़ित परिवारों की संख्या में इस वर्ष की शुरुआत की तुलना में 400 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
मुख्य विपक्षी दल समागी जन बालवेगया (एसजेबी) पार्टी की सदस्य एवं पूर्व स्वास्थ्य मंत्री रजिता सेनारत्ने ने यह दावा करते हुए कहा कि स्वास्थ्य अधिकारियों ने 2021 में अनुमान लगाया था कि साढ़े 10 लाख परिवार परिवार खाद्य असुरक्षा से पीड़ित हैं। उन्होंने यहां मीडिया से कहा,“जब उन्होंने सर्वेक्षण किया तो आर्थिक संकट मौजूदा विनाशकारी स्थिति में नहीं आया था।”
‘द आइलैंड’ अखबार ने श्री सेनारत्ने के हवाले से कहा कि विश्व खाद्य कार्यक्रम (डब्ल्यूएफपी) ने जून 2022 में एक सर्वेक्षण किया था और दावा किया था कि श्रीलंका के 28 प्रतिशत परिवार आर्थिक संकट के बीच खाद्य असुरक्षित थे। उन्होंने कहा, “डब्ल्यूएफपी का कहना है कि लगभग 60 लाख परिवार खाद्य असुरक्षित हैं। इसका मतलब है कि बहुत ही कम समय में खाद्य असुरक्षा का सामना कर रहे लोगों की संख्या में 400 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।”
श्री सेनारत्ने ने कहा कि यह इस बात का संकेत है कि गोतबाया राजपक्षे सरकार की खराब नीतियों के कारण चीजें कैसे बदल गई हैं। उन्होंने कहा,“दुर्भाग्य से वर्तमान सरकार कुपोषण की परिभाषा पर वर्तमान पोषण संकट को बहस में बदलने की कोशिश कर रही है। ऐसा शायद इसलिए है क्योंकि इस आपदा के लिए जिम्मेदार सभी लोग मौजूदा सरकार में भी हैं।”
उन्होंने कहा,“यह स्पष्ट है कि लोग अब पर्याप्त नहीं खा रहे हैं। प्रोटीन के स्रोत बहुत महंगे हैं। यहां तक कि अनाज भी बहुत महंगा है। जो कुछ भी पौष्टिक है वे भी महंगा हैं। इससे बच्चों की वृद्धि प्रभावित होती है। गर्भवती महिलाएं प्रभावित होती हैं। प्रोटीन की कमी सभी प्रकार की परेशानी का कारण बन रहा है।”
पूर्व स्वास्थ्य मंत्री सेनारत्ने ने कहा कि अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने एक जापानी फर्म को जगह आवंटित की थी जो एक पौष्टिक चावल रस्क का उत्पादन करती थी।
श्री सेनारत्ने ने कहा,“बच्चे इसे प्यार करते थे। ये सब रुक गए हैं। हमने सभी गर्भवती महिलाओं को 20,000 रुपये का पोषण बैग दिया। वह कार्यक्रम भी बंद हो गया है।”
उन्होंने कहा,“अस्पतालों में कोई दवा नहीं है तथा कुछ डॉक्टर ऐसे उपकरण लाते हैं जिन्हें इस्तेमाल किया गया है और निजी अस्पतालों से बाहर फेंक दिया गया है जिससे मरीजों का इलाज किया जाता है। उपकरणों को बगैर स्टरलाइज किए सरकारी अस्पतालों में इस्तेमाल करते हैं। यह वह स्थिति है जहां हम अभी हैं।”