रांची:- झारखण्ड के सालाना बजट में इस बार न सिर्फ बेहतर राजकोषीय प्रबंधन की कोशिश दिखी बल्कि वित्त आयोग जैसी संवैधानिक संस्था की सिफारिशों का सम्मान भी स्पष्ट दिखलाई पड़ता है ।
आर्थिक मामलों के जानकार सूर्यकांत शुक्ला ने कहा कि बजट के साथ प्रस्तुत मध्यम अवधि की राजकोषीय नीति विवरणी में राज्य सरकार पर बढे कर्ज का जिक्र है जिससे यह पता चलता है कि झारखण्ड सरकार का कर्ज चालू वित्त वर्ष में बढ़कर एक लाख, तीन हज़ार, छह सौ उनचास रुपया हो गया जो वित्त वर्ष 2019 में 83782 रुपये था।
कर्ज अदायगी और ब्याज भुगतान राज्य सरकारों के खर्च का एक बड़ा हिस्सा होता है। परिपक्वता के समय में राज्य सरकार को कर्ज का भुगतान करने के लिये अपने सालाना राजस्व आय से बड़ी राशि के निकाल लेने से विकास के कार्यक्रम प्रभावित हो जाते हैं। ऐसे समय के लिये राज्य सरकारें एक विशेष कोष का गठन करती हैं।
वित्तमंत्री के बजट भाषण में समेकित डूब निधि के गठन का उल्लेख आया है। इसे बोलचाल की भाषा में कंसोलिडेटेड सिंकिंग फण्ड कहा जाता है। इस फण्ड में सरकार ने चालू वित्त वर्ष के लिये 303 करोड़ रुपये और आगामी वित्त वर्ष 2021-22के लिये 472 करोड़ रुपये का प्रावधान बजट में किया है।
यह मालूम हो कि 12वे वित्त आयोग (2005-2010)ने राज्यों को समेकित डूब निधि के गठन की सिफारिश की थी, परन्तु झारखण्ड में इसका गठन नही हुआ था। हेमंत सोरेन सरकार के वित्त मंत्री ने अपने बजट भाषण में समेकित डूब निधि का इंतज़ाम कर झारखण्ड की ऋण अदायगी क्षमता में अभिवृद्धि के साथ क्रेडिट साख की विश्सनीयता बढ़ाने का काम किया है।
यह भी मालूम रहे कि कोरोना संक्रमण काल में जब राज्यों की राजस्व आय दबाव में आ गयी तो रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया ने 13300 करोड़ रुपये की सुविधा उन राज्यों को देने का निर्णय लिया। जिन्होंने समेकित डूब निधि के कोष का गठन कर रखा था. परन्तु झारखण्ड को इसका फायदा नही मिला क्योंकि समेकित डूब निधि का गठन राज्य ने नही किया था।
समेकित डूब निधि के खाते का संधारण रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया करता है। राज्य सरकारें अपने संचयी कर्ज का 1 से 3 प्रतिशत तक की राशि प्रत्येक साल समेकित डूब कोष खाते में निवेश करती रहती हैं और धीरे धीरे यह एक बड़ा फण्ड बन जाता है जो कर्ज भुगतान के समय बड़ा सहारा सिद्ध होता है। 23 राज्यों ने इस विशेष कोष का निर्माण किया है। झारखण्ड भी अब जुड़ गया है।
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