रांची:- आर्थिक मामलों के जानकार सूर्यकांत शुक्ला ने कहा है कि ऋणात्मक ग्रोथ और कमजोर राजस्व आय से जूझ रही भारतीय अर्थव्यवस्था को वापस विकास की पटरी पर लाने की जिम्मेदारी वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की है और उन्होंने आगामी बजट 2021 को पिछले 100 वर्षों में देखी गयी चीजों से भिन्न बताकर बजट पेश करने के पहले ही अपने बुलंद इरादों का इज़हार कर दिया है। हालांकि आगामी बजट 2021 किस तरह पिछले बजटों से भिन्न होगा, इसका खुलासा वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण 1 फ़रवरी को लोकसभा में अपने बजट भाषण द्वारा करेंगी ।
सूर्यकांत शुक्ला ने बताया कि हाई फ्रीक्वेंसी इंडीकेटर्स इकॉनमी में रिकवरी के संकेत तो रहे है, परन्तु सरकार को जमीनी हकीकत को भी ध्यान में रखना चाहिए कि आगामी वित्त वर्ष में जीडीपी में दोहरे अंको की वृद्धि दर के बावजूद मार्च 2022 को जीडीपी का लेवल 2020 मार्च के स्तर को ही छू पायेगा या ज्यादा से ज्यादा 1 या 2 प्रतिशत की बढ़ोतरी लेवल को प्राप्त कर पायेगा। इसलिए बजट 2021में पूंजीगत खर्च बढ़ाने पर फोकस करना चाहिए।
इकॉनमी की वस्तुस्थिति को सरकारी आंकड़ों के माध्यम से समझने की कोशिश करते हैं।केन्द्रीय सांख्यिकी कार्यालय अपने प्रथम अग्रिम अनुमान में चालू वित्त वर्ष के लिये जीडीपी में 7.7 प्रतिशत गिरावट का आकलन जारी किया है। साथ ही कृषि और बिजली को छोड़कर बाकी सभी क्षेत्रों में संकुचन यानि गिरावट का आकलन जारी किया है। कोरोना संकट काल में सरकार के पास सार्वजानिक व्यय को बढ़ाने के लिये पहले से ज्यादा औचित्य के बावजूद अप्रैल से नवंबर 2020 तक पूंजीगत मद में पिछले साल की समान अवधि की तुलना में 3.8प्रतिशत कम रहा। इसका खुलासा भी लेखा महानियंत्रक की रिपोर्ट से हुआ।
रिज़र्व बैंक के दिसंबर पालिसी स्टेटमेंट में अर्थव्यवस्था में क्षमता उपयोग में कमी और कमजोर मांग को रेखांकित किया गया जबकि फाइनेंसियल स्टेबिलिटी रिपोर्ट में कहा गया कि नियामकीय राहतों के हटते ही बैंकों का एन पी ऐ 13 प्रतिशत पहुंच जायेगा जिससे उधार देने की क्षमता प्रभावित होगी। कामथ कमिटी ने बैंकिंग में 26 सेक्टर्स में कर्जदारों को डिफाल्टर होने से बचाने के लिये 48 लाख करोड़ रुपये के लोन को पुनर्गठित करने की जरूरत बताई। कुल मिलाकर बैंकों के वित्तीय स्वास्थ्य को ठीक करने के लिये सरकार को बजट में पूंजी का जुगाड़ करना होगा। सरकार के आय व्यय का हिसाब किताब रखने वाले लेखा महानियंत्रक की अद्यतन रिपोर्ट में अप्रैल से नवंबर 2020 तक बजट अनुमान का 37 प्रतिशत राजस्व आय की प्राप्ति हुई है।अर्थव्यवस्था की जमीनी हकीकत को ध्यान में रखकर जीडीपी ग्रोथ रेट में वृद्धि लाना सरकार की पहली चिंता होनी चाहिए। राजकोषीय घाटे की चिंता को अस्थायी रूप से दरकिनार करते हुए बुनियादी ढांचा निर्माण,सामाजिक प्रच्क्षेत्र और उपभोक्ता खपत खर्च मद में ज्यादा से ज्यादा आबंटन को प्राथमिकता मिले तो आर्थिकी में बेहतरी दिखने लगेगी। विवेकाधीन खर्च को बढ़ावा देने के लिये आयकर कर दाता को किसी न किसी फॉर्म में राहत दिया जाना चाहिए।गरीब आबादी को कैश ट्रांसफर का प्रावधान तुरत खपत खर्च बढ़ाएगा। हाउसिंग को बढ़ावा देने के लिये होम बायर को टैक्स में 80सी के अलावा छूट देने की घोषणा काफी कारगर होगी। अकुशल श्रमिकों को रोजगार देने और हेल्थ केयर में बुनियादी सुविधाओं को बढ़ाने के लिये सरकार का फोकस तो स्वाभाविक रूप से रहेगा ही। इंफ्रास्ट्रक्चर की फंडिंग के लिये दीर्घकालिक वित्तपोषण वाली व्यवस्था यथा डेवलपमेंट फाइनेंसियल इंस्टिट्यूट जैसी बात बने तो यह असरदार होगा। तंग राजस्व के बावजूद नये कर की घोषणा से अभी बचना चाहिए. उधारी ही अभी अच्छाविकल्प होगा। इसके बाद फ्री लॉन्ग टर्म बांड्स, पान्डेमिक बांड्स विनिवेश, सरकारी भूमि संपत्ति की बिक्री, आरबीआई से लाभांश, फोरेक्स के एक अंश का कुछ समय के लिये इस्तेमाल जैसे तमाम विकल्प सरकार के पास मौजूद हैं।
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