
झांसी:- उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड विश्वविद्यालय (बुंविवि) में चल रहे “ विश्व पर्यटन सप्ताह समारोह” में गुरूवार को आयोजित व्याख्यान श्रृंखला में कृषि पर्यटन के जनक के रूप में विख्यात पाण्डुरंग तावड़े ने कहा कि देश में लगभग 25 करोड़ घरेलू पर्यटक यात्रा करते हैं यदि उसमे से मात्र एक प्रतिशत भी कृषि पर्यटन व उत्पादों के लिए मात्र एक हजार रूपये खर्च करें तो कृषि पर्यटन उद्योग 25000 करोड़ रुपये का हो जायेगा ।
यहां विश्वविद्यालय के गांधी सभागार में पर्यटन एवं होटल प्रबन्धन संस्थान द्वारा आयोजित व्याख्यान श्रृंखला में श्री पाण्डुरंग ने बताया कि कृषि पर्यटन नवाचारी एवं रचनाधर्मी युवाओं के स्टार्टअप के लिए बेहतर विकल्प है क्योंकि कृषि पर्यटन का अनुभव ही एक उत्पाद है । बावडियों व तालाबों में नहाना, बैलगाड़ी की सवारी, खेतों में पतंग उड़ाना, संतुलित वातावरण में विहार करना, शुद्ध शाक सब्जी व पशुपालन इत्यादि कृषि पर्यटन के नैसर्गिक उत्पाद हैं जिनका उत्पादन अथवा उपयोग प्रत्येक किसान प्रत्येक दशा में करता ही है बस इसे पर्यटक उत्पाद के रूप में पर्यटकों के समक्ष प्रस्तुत करना ही पर्याप्त होगा ।
कृषि प्रधान देश होने के पश्चात भी भारत के मात्र 10 प्रतिशत युवा किसान बनकर कृषि करना चाहते हैं जबकि शहरी क्षेत्र में 45 प्रतिशत लोगों का अपने गाँवों से सम्बन्ध लगभग समाप्त हो चुका है जो चिंता का विषय है । उन्होंने बताया कि भारतीय किसान मूल रूप से वर्षाजल, उत्पाद व मूल्यों पर निर्भर होकर अपनी आजीविका चलाते हैं जो किसानो की समस्या की मुख्य वजह भी है । पाण्डुरंग तावड़े ने वर्तमान में किसानो व उनके द्वारा उनके द्वारा उपयोग में लायी जा रही जमीन पर सांख्यिकी आंकड़े प्रस्तुत करते हुए बताया कि आजादी के बाद 1950 के दशक में किसानों की संख्या लगभग डेढ़ करोड़ थी तथा प्रति किसान सात से आठ हेक्टेयर जमीन पर कृषि करता था जबकि 2019 के आंकड़ों के अनुसार देशभर में लगभग 15 करोड़ किसान है किन्तु उनके द्वारा प्रति किसान डेढ़ हेक्टेयर जमीन उपयोग में लायी जा रही है ।
यह आंकडे ये दर्शाते हैं कि भारतीय किसानों को अपने सामाजिक व आर्थिक उन्नयन के लिए पारंपरिक कृषि तकनीक के स्थान पर समेकित विकास पद्धति को अपनाना चाहिए जिससे वह अपने कृषि उत्पादों को विश्व में सर्वाधिक वृद्धि दर से विकसित हो रहे पर्यटन एवं होटल उद्योग के अनुरूप दरों पर बेच सकें । उन्होंने उदहारण देते हुए बताया कि आयुर्वेद की मृदा चिकित्सा थेरेपी अर्थात मड़बाथ के लिए शहरी लोग लगभग दस हजार रूपये खर्च करते हैं जबकि यही सुविधा आम किसान शून्य लागत पर अपने खेत के एक हिस्से में पानी भरकर पर्यटकों अथवा जरुरतमंदों को उपलब्ध करवा कर अच्छी आमदनी कर सकता है ।
प्रश्नकाल में बीयू के शिक्षकों व छात्र – छात्राओं ने पाण्डुरंग तावड़े के समक्ष प्रश्नों की झड़ी लगा दी जिसका उन्होंने बखूबी जवाब देकर सभी की जिज्ञासाओं का समाधान किया ।
बीयू कृषि संस्थान के निदेशक प्रो० बीएस गंगवार ने कहा कि कृषि पर्यटन कृषि संकाय के छात्र-छात्राओं के लिए अत्यंत लाभदायक आयाम सिद्ध होगा जो उन्हें कृषि के साथ-साथ पर्यटन के क्षेत्र में भी रोजगार के नये विकल्प प्रदान करेगा ।
सम्बोधन के उपरांत आईटीएचएम के निदेशक प्रो० सुनील काबिया, कृषि संस्थान के निदेशक प्रो० गंगवार व प्रो० अपर्णा राज द्वारा विषय विशेषज्ञ पाण्डुरंग तावड़े का पुष्पगुच्छ व् स्मृतिचिन्ह देकर स्वागत किया गया। कार्यक्रम का संचालन सत्येन्द्र चौधरी व आईटीएचएम के निदेशक प्रो० सुनील काबिया द्वारा धन्यवाद ज्ञापित किया गया ।